नमस्कार डियर पाठक आज के इस लेख में हम जानेंगे कि, शेयर मार्केट में एक्सपायरी डेट क्या होती है (What is Expiry in Stock Market Hindi) क्योंकि आपने अक्सर स्टॉक मार्केट में सुना होगा कि एक्सपायरी आने वाली है या आज एक्सपायरी डेट है, यह स्टॉक मार्केट में एक कॉमन शब्द है लेकिन क्या आपको इसका मतलब पता है।
एक्सपायरी डेट क्या होती है? एक्सपायरी डेट के दिन क्या होता है? डेरिवेटिव में एक्सपायरी डेट क्या है? एक्सपायरी डेट के दिन क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए आदि चीजें होती है जो आपको पता होनी चाहिए आज इस लेख में हम इन्हीं चीजों को लेकर विस्तार से समझेंगे तो आप इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
शेयर मार्केट का गणित समझ यह सिर्फ मिनटों में
What is Expiry in Stock market in Hindi
शेयर मार्केट में एक्सपायरी डेट क्या है – एक्सपायरी डेट वह तिथि हैं, जैसा कि आपको नाम से ही पता चल रहा है जिस पर एक विशेष कॉन्ट्रैक्ट (डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट समाप्त होता है। प्रत्येक डेरिवेटिव कांट्रैक्ट, जो स्टॉक कमोडिटी या फिर मुद्रा जैसी अंडरलाइंग सिक्योरिटीज पर बेस्ड होता है। इनके समाप्ति तिथि होती है हालांकि अंडरलाइंग सिक्योरिटीज में आमतौर पर कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती है।
एक अंडरलाइंग सिक्योरिटीज पर बेस्ड एक डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट केवल एक निर्दिष्ट अवधि के लिए मौजूद होता है, जो इसकी एक्सपायरी डेट पर समाप्त होता है। एक्स्पायरी डेट पर, डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट अंततः खरीदार और सेलर के बीच सेटल होता है। सेटलमेंट नीचे दिये गए तरीकों में से किसी एक पर हो सकता है –
- फिजिकल डिलिवरी :- किसी विशेष कांटेक्ट के अंतर्गत अंडरलाइंग सिक्योरिटीज के फिजिकल डिस्ट्रीब्यूशन (भौतिक वितरण अधिकतर कमोडिटी के मामले में) कॉन्ट्रैक्ट का सेलर खरीददार को निर्धारित मात्रा में डिस्ट्रीब्यूट करता है, जो इसके लिए पूरी कीमत चुकाता है।
- नकद निपटान :- इसका मतलब है करेंसी के माध्यम से सपोट प्राइस और डेरिवेटिव प्राइस के बीच अंतर का सेटलमेंट, ना की अंडरलाइंड सिक्योरिटीज के माध्यम से। वर्तमान में इंडिया में नकदी द्वारा इक्विटी डेरिवेटिव का निपटान किया जाता है।
भारतीय स्टॉक मार्केट में कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी डेट महीने का आखिरी गुरुवार होता है कुल मिलाकर एक्सपायरी डेट गुरुवार के दिन ही होती है।
अगर हम इसे सरल भाषा में समझे तो डेरिवेटिव मार्केट को हमें कोचिंग संस्थान मान लेते हैं और स्टूडेंट को हम डेरिवेटिव कांट्रैक्ट मान लेते हैं। तो फिर एक्सपायरी डेट वह दिन है, जब स्टूडेंट अपना कोर्स कंप्लीट कर लेते हैं। यह महीने का वह दिन है या फिर ज्यादातर महीने का आखिरी गुरुवार होता है जब डेरिवेटिव कांट्रैक्ट एक्सपायर होता है।
एक्सपायरी डेट के दिन क्या होता है?
स्टॉक एक्सचेंजो पर दो प्रकार के डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट की ट्रेडिंग होती है। पहला है फ्यूचर और दूसरा है ऑप्शन। यह कॉन्ट्रैक्ट ट्रेडर्स द्वारा भविष्य की तिथि पर एक निश्चित मूल्य पर अंडरलाइंग ऐसेट को खरीदने या सेल करने के लिए एक एग्रीमेंट के तौर पर किया जाता है। भविष्य की जो तिथि है यही डेरिवेटिव एक्सपायरी का दिन है।
इस दिन फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट बायर्स को एग्रीमेंट को कंप्लीट करना पड़ता है, जोकि कंपलसरी है यानी अनिवार्य है और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट बायर्स या तो कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को को कंप्लीट कर सकता है या फिर उससे एक्सपायर होने दे सकता है। यही सब होता है एक्सपायरी वाले दिन
एक्सपायरी डेट सबसे महत्वपूर्ण और इंपॉर्टेंट दिन क्यों है
जब कोई ट्रेडर एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट को खरीदता है तो, वह स्टॉक मार्केट में अंडरलाइंग ऐसेट की मूवमेंट और ओपन इंटरेस्ट, फ्यूचर कीमत का मूवमेंट, जैसी अन्य चीजों पर नजर रखता है। फिर अपने एनालिसिस के आधार पर यह डिसाइड करता है कि कॉन्ट्रैक्ट को कब सेटल करना है। और यह एक्सपायरी डेट से पहले किसी भी समय किया जा सकता है।
एक डेरिवेटिव अनुबंध को कंप्लीट करने को सेटलमेंट कहा जाता है। वह कीमत जिस पर उस कॉन्ट्रैक्ट को सेटल किया जाता है। उसे निपटान मूल्य या फिर सेटलमेंट वैल्यू कहा जाता है। और आपको बता दें कि यह मूल्य अक्सर अंडरलाइंग ऐसेट यानी स्टॉक्स, इंडेक्स, कमोडिटी या फिर करेंसी के समापन प्राइस पर डिपेंड करता है। जो नगद सेगमेंट में श्रंखला के लास्ट दिन का प्राइस हो सकता है।
प्रिय पाठक अगर कोई ट्रेडर कॉन्ट्रैक्ट को स्वेच्छा से सेटल नहीं करता है, तो वह कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायरी वाले दिन अपने आप ही एक्सपायर यानी समाप्त हो जाता है। फ्यूचर वे इन द मनी ऑप्शन कांटेक्ट के मामले में ट्रेडर को नकद में सेटलमेंट मूल्य का भुगतान करना या लेना होता है। और वही आउट ऑफ द मनी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट बिल्कुल जीरो हो जाते हैं।
वहीं अगर हम बेसिक से एडवांस की ओर बढ़े तो अगर किसी को बेसिक समझ में आता है तो निश्चित ही वह एडवांस सीख सकता है उसी प्रकार कॉन्ट्रैक्ट मैं अगर पहले वाला सही गया और दूसरे वाले में एडवांस की संभावना दिखती है तो उसमें पोजीशन ले सकते हैं या फ्यूचर्स कांट्रैक्ट को रोल ओवर कर सकते हैं। यह एक्सपायरी के दिन बीते महीने कैरोल आउट डाटा के आधार पर तय किया जाता है।
एक्सपायरी और ऑप्शन वैल्यू
प्रिय पाठक सामान्यतः किसी शेयर के एक्सपायर होने में जितना अधिक टाइम होता है, उसके पास स्ट्राइक प्राइस तक पहुंचने के लिए उतना ही ज्यादा टाइम होता है इसीलिए उसकी टाइम वैल्यू ज्यादा होती।
आपको बता दें कि दो प्रकार के ऑप्शन होते हैं पहला होता है कॉल और दूसरा होता है पुट।
कॉल :- ऑप्शन बायर को शेयर के एक्सपायरी पर पहुंचने से पहले अगर वह स्ट्राइक प्राइस तक पहुंचता है तो उसे खरीदने का अधिकार मिलता है लेकिन दायित्व नहीं।
पुट :- ऑप्शन सेलर को भी अधिकार देता है लेकिन दायित्व नहीं कि अगर शेयर एक्सपायरी डेट तक एक निश्चित स्ट्राइक मूल्य तक पहुंच जाता है तो वह शेयर को बेच सकता है।
अब इन दोनों ही मामलों में बायर और सेलर के पास अधिकार है कि वह शेयर को खरीद लिया बेच सकते हैं पर यह उनका दायित्व यानी कि लायबिलिटी नहीं है कि उसे ऐसा करना ही है।
प्रिय पाठक यही कारण है कि एक्सपायरी डेट ऑप्शन ट्रेडर्स के लिए इतनी इंपॉर्टेंट क्यों है। ऑप्शन का मूल्य डिसाइड होने के टाइम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पुट या कॉल के एक्सपायर होने के बाद टाइम वैल्यू लगभग खत्म हो जाती है या यूं कह मौजूद नहीं रहती है, अगर सरल शब्दों में कह तो एक बार डेरिवेटिव के समाप्त होने पर इन्वेस्टर के पास ऐसा कोई राइट नहीं होता है जो उसके पास कॉल या पुट होल्डर होने के टाइम था।
एक्सपायरी और फ्यूचर वैल्यू
फ्यूचर ऑप्शन से अलग है क्योंकि फ्यूचर एक आउट ऑफ द मनी फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट है जो एक्सपायरी के बाद भी अपनी वैल्यू रखता है। उदाहरण के लिए एक ऑयल कॉन्ट्रैक्ट, जो कि ऑयल के बैरल का प्रतिनिधित्व करता है। अगर कोई उस कॉन्ट्रैक्ट को एक्सपायर होने तक हॉल्ड करता है, तो वह इसलिए हैं क्योंकि या तो कॉन्ट्रैक्ट में बताए गए ऑयल को खरीदना या बेचना चाहता है। इसलिए फ्यूचर कांटेक्ट बेकार नहीं एक्सपायर होता है और इसमें सम्मिलित पक्ष कांटेक्ट के अपने वादे को पूरा करने के लिए दूसरे के प्रति समर्पित होता है।
और जो व्यापारी इस कॉन्ट्रैक्ट को पूरा करने के लिए बाध्य नहीं होना चाहता है उन्हें आखिरी ट्रेडिंग डे पर या उससे पहले अपनी पोजीशन को रोल ओवर क्लोज करना पड़ेगा। एक्सपायर होने वाले कॉन्ट्रैक्ट रखने वाले फ्यूचर ट्रेडर्स को अपने प्रॉफिट या लॉस को हासिल करने के लिए एक्सपायरी से पहले या एक्सपायरी के दिन, क्लोज कर देना चाहिए हालांकि वैकल्पिक रूप में वह कांटेक्ट को होल्ड कर सकते हैं।
रिटेल ट्रेडर आमतौर पर ऐसा नहीं करते हैं, पर ट्रेडर ऐसा करते हैं। उदाहरण के लिए ऑयल बेचने के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग करने वाला एक ऑयल उत्पादक अपने तेल को बेचना चुन सकता है। और फ्यूचर व्यापारी अपनी पोजीशन को रोल भी कर सकते हैं हालांकि यह उनके वर्तमान व्यापार का समापन है और एक्सपायरी से दूर वाले कांटेक्ट के लिए तत्काल बहाली है।
आर्टिकल Summary (एक्सपायरी डेट कैसे देखते हैं)
- डेरिवेटिव्स के लिए एक्सपायरी डेट वह अंतिम तिथि हैं, जब तक एक कॉन्ट्रैक्ट वैलिड रहता है। उसके पश्चात कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायर हो जाता है यानी कि समाप्त हो जाता है।
- प्रिय पाठक डेरिवेटिव्स के प्रकार के बेसिस पर एक्सपायरी डेट अलग-अलग रिजल्ट दे सकती हैं।
- वही ऑप्शन के मालिक ऑप्शन को उपयोग करना चुन सकते हैं और प्रॉफिट या फिर लॉस ले सकते हैं और या फिर इसे यूं ही समाप्त होने दे सकते हैं।
- और आपको बता दें कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के ओनर भविष्य की डेट में कॉन्ट्रैक्ट को रोल रोल करने का विकल्प चुन सकते हैं या फिर अपनी पोजीशन को क्लोज करने और ऐसेट या कमोडिटी की डिलीवरी लेने का विकल्प चुन सकते हैं।
- भारतीय शेयर बाजार में एक्सपायरी हमेशा गुरुवार के दिन ही होती है।
निष्कर्ष: What is Expiry in Stock Market Hindi
डियर पाठक आपको समझ में आ गया होगा कि एक्सपायरी तिथि हमेशा गुरुवार के दिन होती हैं चाहे वह मंथली एक्सपायरी हो या वीकली एक्सपायरी हो या फिर त्रैमासिक एक्सपायरी हो हमेशा गुरुवार को ही होती है। आशा करते हैं आज का लेख What is Expiry in Stock Market Hindi आपको पसंद आया होगा और पढ़ने के बाद आपको काफी नॉलेज मिला होगा इसलिए इस लेख को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अवश्य शेयर करें।
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